Monday, May 31, 2010
munavver gee
"गूँज रहा है दिल में न जाने कब से तुम्हारा नाम
आओ रास्ता देख रही है, गहरी नीली शाम "
मुनव्वर राना को ताज़ी सदी के कबीर के रूप में लोग भले ही जाने या न जाने, धड़कते दिलो की ज़िंदा शायरी के शाएर के रूप में हर कोई जानता है. मासूम नगमों ओंर खरे जज्बों के इस शाएर की पहचान इसकी नई, दिलकश और ज़िंदा आवाज़ है. बेशक यह आवाज़ कबीर ही की मानिंद दिल से निकली और अदाओं से साबित की गई आवाज़ है; वही जो सालों पहले हम से कह गई थी "ढाई आखेर प्रेम का पढ़े सो पंडित होए " पेश है उनकी कुछ बेहतरीन, चुनिन्दा गज़लें:
रात माज़ी का एक अरमान बहुत याद आया
तू भी ऐसे में मेरी जान बहुत याद आया
तजकिरा था तेरी आँखों का सरे बज़्म कही
और मुझे मीर का दीवान बहुत याद आया
ग़म की सूरत जो मेरे दिल को दिया था तूने
ज़िंदगी तेरा वो वरदान बहुत याद आया
जब मेरे हाथ से पैमाना गिरा था राणा
एक टूटा हुआ पैमान बहुत याद आया
**********************************************************************************************ज़ख्म माज़ी के महकने लगे गेसू की तरह
अब तेरी याद भी आती है तो खुशबू की तरह
मौत जल्लाद की मानिंद खडी है सर पर
जीस्त खामोश हे सहमे हुए आहू की तरह
तेरी जुल्फों की घनी छावं ना मिल पाई हमें
ज़िंदगी काट दी जलते हुए साखू की तरह
मय को यह सोच के हम हाथ लगाते ही नहीं
यह भी बेकैफ है मजलूम के आंसू की तरह
उसकी आँखों में समंदर की सी गहराई है
और चेहरा किसी बहते हुए टापू की तरह
*********************************************************************************************
जो मेरे साथ भटकते थे तितलिओं के लिए
खरीद लाएं हैं पर्दे वो खिड्किओं के लिए
तुझे खबर नहीं शायद तेरे बिछुड़ने से
तरस गाएँ हैं ये दरवाज़े दस्तकों के लिए
आओ रास्ता देख रही है, गहरी नीली शाम "
मुनव्वर राना को ताज़ी सदी के कबीर के रूप में लोग भले ही जाने या न जाने, धड़कते दिलो की ज़िंदा शायरी के शाएर के रूप में हर कोई जानता है. मासूम नगमों ओंर खरे जज्बों के इस शाएर की पहचान इसकी नई, दिलकश और ज़िंदा आवाज़ है. बेशक यह आवाज़ कबीर ही की मानिंद दिल से निकली और अदाओं से साबित की गई आवाज़ है; वही जो सालों पहले हम से कह गई थी "ढाई आखेर प्रेम का पढ़े सो पंडित होए " पेश है उनकी कुछ बेहतरीन, चुनिन्दा गज़लें:
रात माज़ी का एक अरमान बहुत याद आया
तू भी ऐसे में मेरी जान बहुत याद आया
तजकिरा था तेरी आँखों का सरे बज़्म कही
और मुझे मीर का दीवान बहुत याद आया
ग़म की सूरत जो मेरे दिल को दिया था तूने
ज़िंदगी तेरा वो वरदान बहुत याद आया
जब मेरे हाथ से पैमाना गिरा था राणा
एक टूटा हुआ पैमान बहुत याद आया
**********************************************************************************************ज़ख्म माज़ी के महकने लगे गेसू की तरह
अब तेरी याद भी आती है तो खुशबू की तरह
मौत जल्लाद की मानिंद खडी है सर पर
जीस्त खामोश हे सहमे हुए आहू की तरह
तेरी जुल्फों की घनी छावं ना मिल पाई हमें
ज़िंदगी काट दी जलते हुए साखू की तरह
मय को यह सोच के हम हाथ लगाते ही नहीं
यह भी बेकैफ है मजलूम के आंसू की तरह
उसकी आँखों में समंदर की सी गहराई है
और चेहरा किसी बहते हुए टापू की तरह
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जो मेरे साथ भटकते थे तितलिओं के लिए
खरीद लाएं हैं पर्दे वो खिड्किओं के लिए
तुझे खबर नहीं शायद तेरे बिछुड़ने से
तरस गाएँ हैं ये दरवाज़े दस्तकों के लिए
Wednesday, May 5, 2010
Tuesday, May 4, 2010
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