Friday, July 23, 2010

अब आगे ......

वह भी रात थी जब पहली बार वह कैसेट सुन उसने करवटें ही बदली थी, आज भी राते बेचैन और करवटों में कटती हैं पर.....वैसी नहीं."इश्क आगाज़ में हल्की सी खलिश देता है
                      और फिर सैकड़ों आजार से लग जातें हैं.."
उसे लगा जैसे शेखर ही उसके कानो के पास आकर सरगोशी कर रहा हो. रातें तो आज भी करवट करवट हैं, पर इस बेचैनी के कड़वेपन में बार बार उसे अहसास होता, चीख चीख कर शेखर को आवाज़ दे, "आओ देखो! में वही औरत हूँ जिसके होने से एक बार तुम्हारे अधूरेपन को पूरापन मिला था, तुम्हारी तन्हाइयां रोशन हुई थी, तुम्हारी खामोशी को सुर मिले थे और तुम्हारे रूठे हुए वक्त में तुम्हे जीने की ताकत मिली थी. आज वह औरत अधूरी है, उसकी कामत का साया कोई नहीं, आज उसकी खामोशी पर मनहूसियत तारी है, उसका वक्त रूठा है, उसे संवारने, सहलाने और सहारा देने वाला कोई नहीं, बोलो शेखर!!!! क्या जो कल तुम्हारी प्रेरणा थी, वह आज इसीलिए उपेक्षित है कि वह महज़ एक औरत है,  किसी की ओरत नहीं, सिर्फ एक औरत. क्योंकि,     तुमने उसे किसी का होने नहीं दिया, और तुम्हारे बाद वह किसी की हो नहीं पाई"
                                                   उसने खामोशी से अपने गिरते हुए आंसुओ को खुद ही पोछा, घड़ी देखी,  १ बज गया था. "बाप रे! सुबह  कालेज जाना है, एक नया दिन नई मसरूफियत, और फिर एक रात, जिसमे इंतज़ार हैं, कब ख़त्म होंगी ये रातें? कितनी और जीनी है अभी ऐसी? गाउन पहन सोने का उपक्रम करने लगी मोनिका. (बाकी आइन्दा................)  

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