tag:blogger.com,1999:blog-38966348276839883252024-03-18T20:17:05.990-07:00khushbukhushihttp://www.blogger.com/profile/05488389392112593924noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-3896634827683988325.post-77424724371730986662011-01-15T05:52:00.000-08:002011-01-15T05:52:43.180-08:00<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiPnsQ5y-VyGVV4C4hOqTV_1w63xWAH604BmG7zV6KwsseR9AXNdu_zKbPoz_lZUgKuCAT9M9GiobH2RuuaUZKuE2w98Zw9hp0Nk5WjwpbnW-sbxPUzrtto659P_ZWGs8ilLkxLduBwAZk/s1600/larka-larki.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="212" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiPnsQ5y-VyGVV4C4hOqTV_1w63xWAH604BmG7zV6KwsseR9AXNdu_zKbPoz_lZUgKuCAT9M9GiobH2RuuaUZKuE2w98Zw9hp0Nk5WjwpbnW-sbxPUzrtto659P_ZWGs8ilLkxLduBwAZk/s320/larka-larki.jpg" width="320" /></a></div>कितना कुछ था जो वक्त के साथ ही चूक गया था, तब तो शायद लगता भी नही था, कि जिसके साथ मौसम फरिश्तों जैसा है, जो आज के अकेलेपन को बहुत सिसकने के बाद मिला है, और जिसके बाद वो रब से कुछ मांग भी नहीं पाएगी, वह शेखर, आज का तोहफा नहीं, कल की आज़माइश साबित होगा, वो जिसके नाम के रात-दिन वह आज जीती है, वही उसके आनेवाले कल को गुमनाम छोड़ जाएगा, आज जिसके नाम से मौसमों में महक है, वह कल की सबसे ज्यादा घुटन भरी हवा साबित होगा! उसने खुद से बाहर आने की कोशिश की उफ्फो!!! असेम्बली पूरी खाली; सब लोग कब के जा चुके थे, एक वही थी, जो.......अपनी उचाट सी नज़रें उठा कर उसने असेम्बली के सन्नाटे को घूरा:<br />
<div style="text-align: center;">"इस कमरे में ख्वाब रखे थे, कौन यहाँ पर आया था</div><div style="text-align: center;">गुमसुम रोशनदानो बोलो क्या तुमने कुछ देखा था...."</div><div style="text-align: left;">"लो बहन जी यहाँ बैठी हैं! आपको कुछ खबर है ज़माने की! सारा कोलेज खाली हो गया है सब जा चुके हैं ...आप हैं कि....!!!"</div><div style="text-align: left;">सुषमा की तुनक भरी आवाज़, उसे लगा जैसे कहीं बहुत गहरे कुए से आ रही हो, उसने मुस्कुरा कर उसे देखा, सामान समेटा, और कहा," बस!!!! आ ही रही थी मै." लान के सुन्दर फूल, गहरी हरी घास, खुली हवा, उसे लगा दो मिनट के लिए जेसे फिर जी ली हो वह, बस, उन्ही दो मिनट तो भूल पाई थी उसे.....वही दो मिनट ज़िंदगी के....बाकी फिर, मौत!!!!</div><div style="text-align: center;">भूलें हैं रफ्तां-रफ्तां, तुझे मुद्दतों के बाद</div><div style="text-align: center;">किस्तों में खुदकशी का, मज़ा हम से पूछिए....</div><div style="text-align: center;">(बाकी आईन्दा.........)</div><div style="text-align: center;"> </div>khushihttp://www.blogger.com/profile/05488389392112593924noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3896634827683988325.post-9225272507399377342010-08-23T11:24:00.000-07:002010-08-23T11:24:26.368-07:00<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEibDp-oe19FJJqv8A7lEj8qNV9vk8FMcMK3UsX54lfcd9X-w58iD9KFkJOCXBtJD2g8ZDONtDUti4R_RNiHPMu61ldy2qBsNuEK3HCkh7d61IB9RGGAHk9L8uvvdjMzROcN562qJbtuHoM/s1600/DSC00077.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEibDp-oe19FJJqv8A7lEj8qNV9vk8FMcMK3UsX54lfcd9X-w58iD9KFkJOCXBtJD2g8ZDONtDUti4R_RNiHPMu61ldy2qBsNuEK3HCkh7d61IB9RGGAHk9L8uvvdjMzROcN562qJbtuHoM/s320/DSC00077.JPG" /></a></div><br />
....पर कंहाँ बचा था उसका अपना आप? ज़िंदगी ऊपर से शांत थी पर अन्दर की बेचैनियाँ! उसके होंठो पर अक्सर एक तंजिया मुस्कराहट खेल जाती, जब भी वह खुद के बारे में सोचती, गुनगुना उठती:<br />
"हमने दरिया से सीखी है, पानी की पर्दादारी<br />
ऊपर ऊपर हंसते रहना, गहराई में रो लेना"<br />
रास्ता भी जैसे उसके ख्यालों में कटा, और वह कॉलेज भी जैसे उसे सोचते सोचते ही आई, आज १५ अगस्त है, कुछ ख़ास है नहीं, यही वह दिन था जब शेखर ने पहली बार प्रपोज़ किया था, प्रिसिपल सर की स्पीच सुनते सुनते भी उसकी आँखों के सामने वही घूम रहा था, पास में कौन बैठा है इतनी भी सुध नहीं....हल्का हल्का स्पर्श, पता नहीं किसकी अँगुलियों का? उसने चौंक कर देखा, जीतेन्द्र, फिजिक्स का लेक्चरार ...."आज इतनी अच्छी लग रही हो कि जी में आता है...तुम्हारे घर के पास ही घर ले लूं! "उसने उसकी भूखी निगाहों को देखा...और एक बारगी काँप कर हर गई......झटके से हाथ खींच अपना स्थान बदल लिया.<br />
कहाँ कँहा से.. बदलूंगी अपना स्थान! क्या कर गए शेखर!!!<br />
"जो बादलों से भी मुझको बचाए रखता था<br />
बड़ी है धूप तो बेसायबान छोड़ गया ......"....................(बाकी आईंदा)khushihttp://www.blogger.com/profile/05488389392112593924noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3896634827683988325.post-874168153066074632010-08-02T01:47:00.000-07:002010-08-02T01:47:07.244-07:00<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg0pdfh9muE0S-uKxDl6XLRW3qHf61JFQSY45FH77j_HWQVwRjbfzohb5NrYXOhSwud2dC4EjMZlopXpu-qjL2-yI_WnHDm0wI4mWPkLV404BAO9_9V5E6K_TkjJZ2KxDAoqrQ3oN-ZLSc/s1600/colorful-lips-03.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg0pdfh9muE0S-uKxDl6XLRW3qHf61JFQSY45FH77j_HWQVwRjbfzohb5NrYXOhSwud2dC4EjMZlopXpu-qjL2-yI_WnHDm0wI4mWPkLV404BAO9_9V5E6K_TkjJZ2KxDAoqrQ3oN-ZLSc/s320/colorful-lips-03.jpg" width="320" /></a></div><br />
धीरे धीरे रात गहरा रही थी. वह चाहती थी, शेखर बसंत राव इसी रात के घेरे में कही हमेशा हमेशा के लिए गुम हो जाए, कभी न आए कभी भी न. पर नींदों का क्या करे जो शेखर की यादों के बगैर आँखों के पालों तक भी नहीं फटकती थी."मेरी तो नींदें भी चली गयी हैं शेखर ", एक सूखी सी हंसी और बस एक आह! इतना भर निकला उसके मुह से. उसने करवट बदली, पता नहीं कब आँख लगी, और तड़के, भोर की पहली किरण के साथ, चिड़ियों सी चहकती वह बिलकुल ताज़ा थी. न तो किसी को पता था कि कोई किसी के लिए रात भर तड़पा था, और न ही किसी को इस बात का कोई फर्क पड़ना था, कि कोई किसी के लिए कितनी रातों से जाग रहा है. अब कँहा कोई है जो कहे, "गुड वाली नाईट" या "उठ गई जान"<br />
पूजा के बाद उसने, गीले बालों को सूखने, खुला छोड़ दिया, और साड़ी की भांजे सुधारती, जाने की तैयारियों में मशगूल हो गयी. अब वह रात की तरह कमज़ोर लडकी नहीं, बल्कि सुबह की शेरनी जो थी.<br />
ज़िन्दगी को बस एक बार ही कोई घायल कर गया था, शुक्र है उसका आप तो बचा था,..............(बाकी आइनदा .......) khushihttp://www.blogger.com/profile/05488389392112593924noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3896634827683988325.post-78069958262026687792010-07-23T03:26:00.000-07:002010-07-23T03:26:51.612-07:00अब आगे ......<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgPHYIUm8eNFAPXDu8wJqpJ1HMhWGt7mWEe-b4ymvTOYSL49EHA4rxC_7JdueCadbkP8HtJyOnpoT5BwQW9vJBmO8JhCiPgfcFkPo9alr91pGAEe8qlcPdXEWKKA7MzTTVHVaGNIj2t8cg/s1600/dukh.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgPHYIUm8eNFAPXDu8wJqpJ1HMhWGt7mWEe-b4ymvTOYSL49EHA4rxC_7JdueCadbkP8HtJyOnpoT5BwQW9vJBmO8JhCiPgfcFkPo9alr91pGAEe8qlcPdXEWKKA7MzTTVHVaGNIj2t8cg/s640/dukh.jpg" width="616" /></a></div>वह भी रात थी जब पहली बार वह कैसेट सुन उसने करवटें ही बदली थी, आज भी राते बेचैन और करवटों में कटती हैं पर.....वैसी नहीं."इश्क आगाज़ में हल्की सी खलिश देता है<br />
और फिर सैकड़ों आजार से लग जातें हैं.."<br />
उसे लगा जैसे शेखर ही उसके कानो के पास आकर सरगोशी कर रहा हो. रातें तो आज भी करवट करवट हैं, पर इस बेचैनी के कड़वेपन में बार बार उसे अहसास होता, चीख चीख कर शेखर को आवाज़ दे, "आओ देखो! में वही औरत हूँ जिसके होने से एक बार तुम्हारे अधूरेपन को पूरापन मिला था, तुम्हारी तन्हाइयां रोशन हुई थी, तुम्हारी खामोशी को सुर मिले थे और तुम्हारे रूठे हुए वक्त में तुम्हे जीने की ताकत मिली थी. आज वह औरत अधूरी है, उसकी कामत का साया कोई नहीं, आज उसकी खामोशी पर मनहूसियत तारी है, उसका वक्त रूठा है, उसे संवारने, सहलाने और सहारा देने वाला कोई नहीं, बोलो शेखर!!!! क्या जो कल तुम्हारी प्रेरणा थी, वह आज इसीलिए उपेक्षित है कि वह महज़ एक औरत है, किसी की ओरत नहीं, सिर्फ एक औरत. क्योंकि, तुमने उसे किसी का होने नहीं दिया, और तुम्हारे बाद वह किसी की हो नहीं पाई"<br />
उसने खामोशी से अपने गिरते हुए आंसुओ को खुद ही पोछा, घड़ी देखी, १ बज गया था. "बाप रे! सुबह कालेज जाना है, एक नया दिन नई मसरूफियत, और फिर एक रात, जिसमे इंतज़ार हैं, कब ख़त्म होंगी ये रातें? कितनी और जीनी है अभी ऐसी? गाउन पहन सोने का उपक्रम करने लगी मोनिका. (बाकी आइन्दा................) khushihttp://www.blogger.com/profile/05488389392112593924noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3896634827683988325.post-59011132818096752152010-07-19T09:58:00.000-07:002010-07-19T09:58:14.938-07:00आगे<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiR1TQMA_ejUK5ceuo5D2mhZ4oHfwIaY394zAQJw4NMW7TDhLsXRE0qUJotlimiTtSsz1PWTUB9P-EcZy1bWx7jzu4EtFtLxCzHd5SXVpYUubCcLX-wAatIZX4LG2llb2fdZ2yfjuxrNtE/s1600/beautiful-eyes.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="355" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiR1TQMA_ejUK5ceuo5D2mhZ4oHfwIaY394zAQJw4NMW7TDhLsXRE0qUJotlimiTtSsz1PWTUB9P-EcZy1bWx7jzu4EtFtLxCzHd5SXVpYUubCcLX-wAatIZX4LG2llb2fdZ2yfjuxrNtE/s400/beautiful-eyes.jpg" width="400" /></a></div>हाँ ये वही कैसेट था जो सबसे पहले गिरा था, "साउंड-शोपी" से बाहर आते वक्त, और उसे देने के लिए झुकी थी मोनिका! "ज जी शुक्रिया!" जवाब में मुस्कुरा भर दी थी मोनिका. उसकी मुस्कराहट का जादू नहीं, उम्र के उस दौर का जादू था, जहां अमूमन सभी लडकियां अच्छी लगती हैं, शायद कुछ ज़्यादा अच्छी. मोनिका पहली ही केटेगिरी की थी, पर उसकी मुस्कराहट में बला की कशिश थी. "शेखर बसंत राव!, मेरा नाम है", खुद-ब-खुद शेखर के मुहं से निकला था, वह फिर मुस्कुरा दी, रस्मी मुस्कराहट के साथ, कैसेट पलट कर देखी और जैसे उसकी आँखों में चमक सी आ गई "नुसरत फतह अली खान! " उसके मुह से हैरत से निकला. अब मुस्कुराने की बारी अगले की थी, "क्यों क्या आपकी और हमारी कुण्डली का यह गृह मिलता है? " वह झिझकी, "बसंत आपके पिता जी का नाम है, " झिझक मिटाने के लिए ही तो पूछा था उसने. "अरे!! नहीं जी, माँ ने बसंत नाम दिया था, और पिताजी ने शेखर, मैंने दोनों के मन को खुश कर दिया; वैसे बन्दा इसी ही नाम से नग्मानिगारी करता है". माय गोड! अगर वक्त पर नेहा आकर आवाज़ न देती तो लगता था कि ये आज की पूरी शाम ही चट कर जाता, "आपको जाना है, कैसेट पसंद हो तो सुनने के लिए ले लें." वह पूछने से ज़्यादा, मोहब्ब्त से आदेश देने का आदी था, मोनिका बेचारी! उसने कैसेट रख ली; "सुनिए! अपना पता तो देती जाइए, वापस कहाँ आकर लूंगा?" जवाब में उसने तुरत-फुरत पिताजी का नंबर दे बाहर की राह ली. (बाकी आइन्दा........)khushihttp://www.blogger.com/profile/05488389392112593924noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3896634827683988325.post-10855779329418713192010-07-19T05:15:00.000-07:002010-07-19T05:15:11.493-07:00(गतांक से आगे......)<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiwZ7rmBo9c8SOb4cm2WhBYYn4aZ61fCW1VnSnyc2VNFvBr4360sbrFkY3_j_4IiteE1CNd-_Kk3BrMKOj5GQaiO_mjHXjqUHsLpZWSNrZYjv_vVDWIymPk5ldxpWbuXyfaCLYr0VIR9EI/s1600/The+Beauty+of+Sadness+B%26W.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiwZ7rmBo9c8SOb4cm2WhBYYn4aZ61fCW1VnSnyc2VNFvBr4360sbrFkY3_j_4IiteE1CNd-_Kk3BrMKOj5GQaiO_mjHXjqUHsLpZWSNrZYjv_vVDWIymPk5ldxpWbuXyfaCLYr0VIR9EI/s400/The+Beauty+of+Sadness+B%26W.jpg" width="296" /></a></div> हैरत है उसे इस रुलाई के बाद कितना सुकून मिलता है, जैसे सबकुछ धुल गया हो, साफ़-शफ्फाफ हो गया हो, और जीने के जैसे नए सामान उसके लिए सुलभ हो गए हों. खिड़की से नज़र आते ट्यूलिप के फूल अँधेरे में धुंधला रहे थे, और चाय की चुस्कियां भरता उसका ज़हन धीरे-धीरे, अतीत उजला रहा था, लाख कोशिशों के बावजूद उसकी आंखे फिर भीग गई, "क्या भूले? क्या क्या भूले? शेखर! ज़िन्दगी वैसे ही कोई कम तकलीफदेह थी, जो इसमें तुम आकर वापस चले गए?" उसके आंसू, उसी से सवाल करने लगे थे, और ऐसे सवाल जिनके जवाब होते ही नहीं हैं. जिस्म, जान रूह सब ही तो अनाथ हो गया था उसका. सच ही तो है, बिट्टो बुआ ठीक कहती थी, "रानी! औरत तो मर्द का एक लम्हा होती है, पर याद राखिओ! मर्द अनजाने ही औरत का पूरे का पूरा वक्त हो जाता है." उसने निश्वास सी छोड़ी और उठ कर घड़ी देखी, आठ बजी है, शेखर शायद प्रेस में होगा, केन्टीन में लंच कर रहा होगा या फिर अपनी सरकारी नौकरी के एवज पाई खूबसूरत बीबी के साथ बैठा सास बहू का कोई सीरियल देख रहा होगा. उसने सर झटक कर इन सोंचो से दूर जाना चाहा, पर मन का क्या करे, उसे आदत थी, ८ बजते ही शेखर की आवाज़ सुनने की; कहाँ होगा? ठीक भी होगा कि नहीं? इन तीन सालों में कितनी बार दिल चाहा उसका, चीख-चीख कर कहे, " मत बनाओ मुझे अपना आदी; मेरी ज़िन्दगी के सारे रंग सिर्फ तुम्हारी वजह से हैं, प्लीज़ शेखर! मत किया करो यूँ मुझे फोन, जब तुम नहीं होगे, चीख- चीख मरूंगी मै!"<br />
पर होता अक्सर यही है, लम्हे खता करतें हैं और सदियाँ सजावार हो जाती हैं. अगले ही पल शेखर का फोन आता और बगैर सड़क, दूकान, घर, ऑफिस और मकान की परवाह किए, वह उसकी हर ज़हनी ज़रुरत पूरी करने में अपना आप भुला जाती. उसे गुस्सा आने लगा था, मालूम नहीं खुद की ज़हानत पर या रब के क़ानून पर जिसने औरत में एक माँ, एक प्रेमिका, बीवी, बेटी बहन और पड़ोसन सभी कुछ शामिल कर दिया था. इसी क़ानून के तहत शेखर ने इससे इन सारे रूपों की मोहब्ब्त वसूली थी पर ये क्या! कि खुद को बड़ा बेरहम साहूकार साबित करके गया था शेखर. खामुशी से पल्ला छुडाने के लिए, उसने रेडियो चालू किया, "शहर के दुकादारों, कारोबारे-उल्फत में<br />
सूद क्या, ज़ियाँ क्या है तुम न जान पाओगे......." सुना और खुद पर मुस्कुरा कर रह गई वह!<br />
कहाँ कहाँ से पल्ला छुडाऊ शेखर! ये वही कैसेट थी जो तुमने मुझे ...............(बाकी aaindaa)<br />
<br />
khushihttp://www.blogger.com/profile/05488389392112593924noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3896634827683988325.post-62620619020111170412010-07-17T07:57:00.000-07:002010-07-17T07:57:07.601-07:00कमबख्त ये अकेलापन! उसे खुद पर झूंझ आ रही थी, बेशक ये रास्ता उसने खुद चुना था, पर उसे क्या पता था कि :<br />
"जो आँखों ओंट हो चेहरा, उसी को देख कर जीना<br />
ये समझा था कि है आसां, मगर आसां नहीं होता."<br />
बेशक माँ बाबूजी ने उसे यह विकल्प दिया था, पर शायद ज़िन्दगी ने नहीं. हवा के एक झोंके ने उसे फिर अतीत से वर्तमान में ला पटका था. रात के अकेले होने का डर, पराया शहर, ज़िंदगी की थकन! कभी कभी लगता था, बसंत की यादें उसे अकेला, मनहूस और पागल कर देंगी........!!!उसने एक गहरी सांस छोड़ी, उठ कर खिड़की के पल्ले पर किल्ली का सहारा दिया और चाय बनाने चली गयी, "अब भूल जाओ मुझे, हो सके तो माफ़ कर देना..." यही तो लफ्ज़ थे बसंत के, जब वह आख़िरी दफा उसे रेलवे-स्टेशन पर छोड़ने आई थी. उसकी निगाहों में वो एक दिन जैसे फिर से ज़िंदा हो आया. अपनी हंसी के लिए सबसे ज़्यादा बदनाम प्राध्यापक अचानक से ही रोने लगी थी, पहले आंसू फिर सिसकी, और इस अकेलेपन में उसकी आवाज़ उसके कान आसानी से सुन रहे थे," ओ रब्बा!!! औरत होना क्या इतना जुर्म है " उसने खुद से ही ऊँची आवाज़ में पूछ लिया था.शुक्र है , उसके इस खाली घोंसले में उसे रोने की आज़ादी थी, वरना जी भी कैसे पाती वो! .(बाकी आइन्दा) <br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjtX7B8zfYjzPAWWtbPyhyphenhyphen8DIutRBH0bxmmgUVioKyvM5pdnU0MUhIEB6kX0-UGRngUgm5N7QSnDypCvuHs1FdY3Js7TNX4QyygeN3UzzLxagjanwksNRsoKzC9qxqFquM38u_ZagmboH0/s1600/i.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjtX7B8zfYjzPAWWtbPyhyphenhyphen8DIutRBH0bxmmgUVioKyvM5pdnU0MUhIEB6kX0-UGRngUgm5N7QSnDypCvuHs1FdY3Js7TNX4QyygeN3UzzLxagjanwksNRsoKzC9qxqFquM38u_ZagmboH0/s320/i.jpg" width="320" /></a></div>khushihttp://www.blogger.com/profile/05488389392112593924noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-3896634827683988325.post-3062397333626743522010-06-20T03:07:00.000-07:002010-06-20T03:07:03.799-07:00<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-ZTzeBGYUrOSUiDqFOmmQd_qwhoG4q2S7Zuz8ZDzQA1P_SHagyaKFSeTGBrT3Yv0w373YSDML5XHBAD7MRUAUZus6RUwGATq7RaHy7WQjbWJc4Uu_GAkMQqQqJ8IjSQPPMgK7visJU2M/s1600/18.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-ZTzeBGYUrOSUiDqFOmmQd_qwhoG4q2S7Zuz8ZDzQA1P_SHagyaKFSeTGBrT3Yv0w373YSDML5XHBAD7MRUAUZus6RUwGATq7RaHy7WQjbWJc4Uu_GAkMQqQqJ8IjSQPPMgK7visJU2M/s320/18.jpg" width="320" /></a></div>खिसकी से डूबते सूरज का पीला होकर गहराता मंज़र साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था. .........(बाकी aaiyndaa)khushihttp://www.blogger.com/profile/05488389392112593924noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3896634827683988325.post-42525602488526762292010-06-17T06:44:00.000-07:002010-06-17T06:44:26.091-07:00<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjcAvnXbc8VSmqRVzD5k51tNAGjIg_nT8PXYvgLa_EYpKY2vaSsh2WQLZtxri69VbUJJg44rzMQiQi-y8MoFDyuaRqb5ktqxq6H7tTzkku513vEZxos4Vj-Ed5QUP7533CiNj3QWBDMctc/s1600/DSC08941.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjcAvnXbc8VSmqRVzD5k51tNAGjIg_nT8PXYvgLa_EYpKY2vaSsh2WQLZtxri69VbUJJg44rzMQiQi-y8MoFDyuaRqb5ktqxq6H7tTzkku513vEZxos4Vj-Ed5QUP7533CiNj3QWBDMctc/s320/DSC08941.JPG" width="320" /></a></div> <br />
अँधेरी राह में कांटे, पाँव में छाले मंजिल दूर<br />
ऐसी भयानक घडियो में ही प्यार को परखा जाता है<br />
सच है आखिर कोई ज़्यादा दिन दीवाना कैसे रह सकता है, मोनिका ने उठ कर खिड़की खोली, ठंडी हवा का ताज़ा झोंका उसके वजूद से टकराया, और घुटन ओंर तपिश से आजिज़ उसके जिस्म को राहत मिली.थक कर निढाल सा पडा जिस्म पलंग के सरहाने का सहारा पाकर जैसे शादाब सा हो गया था.. उसकी आँखे खुद- ब- खुद बंद होने लगीं. हज़ार टेंशन और परेशानियों के बावजूद जैसे नींद अपना रास्ता खुद ही बना लेती है, आँख लगी, झटके से खुली, फिर लगी उसे लगा कोई था पर हकीकत में कोई भी नहीं था, उसने मुस्कुरा कर फिर आँखे मूँद ली, वह तो चाहती भी नहीं थी की अब कोई आए, इंतज़ार करते करते जैसे उसे अब इस ही में मज़ा आने लगा था,...........(बाकी आईंदा) khushihttp://www.blogger.com/profile/05488389392112593924noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3896634827683988325.post-42583308853497977382010-05-31T23:59:00.001-07:002010-05-31T23:59:27.813-07:00khushihttp://www.blogger.com/profile/05488389392112593924noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3896634827683988325.post-14186036438829665452010-05-31T23:49:00.000-07:002010-05-31T23:49:49.900-07:00munavver gee "गूँज रहा है दिल में न जाने कब से तुम्हारा नाम<br />
आओ रास्ता देख रही है, गहरी नीली शाम "<br />
<br />
मुनव्वर राना को ताज़ी सदी के कबीर के रूप में लोग भले ही जाने या न जाने, धड़कते दिलो की ज़िंदा शायरी के शाएर के रूप में हर कोई जानता है. मासूम नगमों ओंर खरे जज्बों के इस शाएर की पहचान इसकी नई, दिलकश और ज़िंदा आवाज़ है. बेशक यह आवाज़ कबीर ही की मानिंद दिल से निकली और अदाओं से साबित की गई आवाज़ है; वही जो सालों पहले हम से कह गई थी "ढाई आखेर प्रेम का पढ़े सो पंडित होए " पेश है उनकी कुछ बेहतरीन, चुनिन्दा गज़लें:<br />
<br />
रात माज़ी का एक अरमान बहुत याद आया<br />
तू भी ऐसे में मेरी जान बहुत याद आया<br />
<br />
तजकिरा था तेरी आँखों का सरे बज़्म कही<br />
और मुझे मीर का दीवान बहुत याद आया<br />
<br />
ग़म की सूरत जो मेरे दिल को दिया था तूने<br />
ज़िंदगी तेरा वो वरदान बहुत याद आया<br />
<br />
जब मेरे हाथ से पैमाना गिरा था राणा<br />
एक टूटा हुआ पैमान बहुत याद आया<br />
<br />
<br />
**********************************************************************************************ज़ख्म माज़ी के महकने लगे गेसू की तरह<br />
अब तेरी याद भी आती है तो खुशबू की तरह<br />
<br />
मौत जल्लाद की मानिंद खडी है सर पर<br />
जीस्त खामोश हे सहमे हुए आहू की तरह<br />
<br />
तेरी जुल्फों की घनी छावं ना मिल पाई हमें<br />
ज़िंदगी काट दी जलते हुए साखू की तरह<br />
<br />
मय को यह सोच के हम हाथ लगाते ही नहीं<br />
यह भी बेकैफ है मजलूम के आंसू की तरह<br />
<br />
उसकी आँखों में समंदर की सी गहराई है<br />
और चेहरा किसी बहते हुए टापू की तरह<br />
********************************************************************************************* <br />
जो मेरे साथ भटकते थे तितलिओं के लिए<br />
खरीद लाएं हैं पर्दे वो खिड्किओं के लिए<br />
<br />
तुझे खबर नहीं शायद तेरे बिछुड़ने से<br />
तरस गाएँ हैं ये दरवाज़े दस्तकों के लिएkhushihttp://www.blogger.com/profile/05488389392112593924noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3896634827683988325.post-76183284869953794592010-05-31T23:48:00.001-07:002010-05-31T23:48:30.227-07:00<a href="http://www.blogger.com/home">Dashboard</a>khushihttp://www.blogger.com/profile/05488389392112593924noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3896634827683988325.post-71768514934171481202010-05-05T01:05:00.000-07:002010-05-05T01:07:49.931-07:00shaam-e-ghum ki kasamgham agar achhar ki trah sahej lie jaaain to zyadaa satate hain..........khushihttp://www.blogger.com/profile/05488389392112593924noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3896634827683988325.post-21946478407655078832010-05-04T07:04:00.000-07:002010-05-04T07:07:19.008-07:00tum tanha duniya se ladoge, baccho si baatein karte ho . . . . !khushihttp://www.blogger.com/profile/05488389392112593924noreply@blogger.com2